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हिंदी दिवस: व्यंग्य कवितायें व आलेख

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लो आ गया हिन्दी दिवस

नारे लगाने वाले जुट गये हैं।

हिंदी गरीबों की भाषा है

यह सच लगता है क्योंकि

वह भी जैसे लुटता है

अंग्रेजी वालों के हाथ वैसे ही

हिंदी के काफिले भी लुट गये हैं।

पर्दे पर नाचती है हिंदी

पर पीछे अंग्रेजी की गुलाम हो जाती है

पैसे के लिये बोलते हैं जो लोग हिंदी

जेब भरते ही उनकी जुबां खो जाती हैं

भाषा से नहीं जिनका वास्ता

नहीं जानते जो इसके एक भी शब्द का रास्ता

पर गरीब हिंदी वालों की जेब पर

उनकी नजर है

उठा लाते हैं अपने अपने झोले

जैसे हिंदी बेचने की शय है

किसी के पीने के लिये जुटाती मय है

आओ! देखकर हंसें उनको देखकर

हिंदी के लिये जिनके जज्बात

हिंदी दिवस दिवस पर उठ गये हैं।

……………………………

हम तो सोचते, बोलते लिखते और

पढ़ते रहे हिंदी में

क्योंकि बन गयी हमारी आत्मा की भाषा

इसलिये हर दिवस

हर पल हमारे साथ ही आती है।

यह हिंदी दिवस करता है हैरान

सब लोग मनाते हैं

पर हमारा दिल क्यों है वीरान

शायद आत्मीयता में सम्मान की

बात कहां सोचने में आती है

शायद इसलिये हिंदी दिवस पर

बजते ढोल नगारे देखकर

हमें अपनी हिंदी आत्मीय

दूसरे की पराई नजर आती है।

……………………….

हिंदी दिवस पर अपने आत्मीय जनों-जिनमें ब्लाग लेखक तथा पाठक दोनों ही शामिल हैं-को शुभकामनायें। इस अवसर पर केवल हमें यही संकल्प लेना है कि स्वयं भी हिंदी में लिखने बोलने के साथ ही लोगों को भी इसकी प्रोत्साहित करें। एक बात याद रखिये हिंदी गरीबों की भाषा है या अमीरों की यह बहस का मुद्दा नहीं है बल्कि हम लोग बराबर हिन्दी फिल्मों तथा टीवी चैनलों को लिये कहीं न कहीं भुगतान कर रहे हैं और इसके सहारे अनेक लोग करोड़पति हो गए हैं। आप देखिए हिंदी फिल्मों के अभिनेता-अभिनेत्रियों को जो हिंदी फिल्मों से करोड़ों रुपए कमाते हैं पर अपने रेडियो और टीवी साक्षात्कार के समय उनको सांप सूंघ जाता है और वह अंग्रेजी बोलने लगते हैं। वह लोग हिंदी से पैदल हैं पर उनको शर्म नहीं आती। सबसे बड़ी बात यह है कि हिंदी टीवी चैनल वाले हिंदी फिल्मों के इन्हीं अभिनता अभिनेत्रियों के अंग्रेजी साक्षात्कार इसलिये प्रसारित करते हैं क्योंकि वह हिंदी के हैं। कहने का तात्पर्य है कि हिंदी से कमा बहुत लोग रहे हैं और उनके लिये हिंदी एक शय है जिसे बाजार में बेचा जाये। इसके लिए दोषी भी हम ही हैं। सच देखा जाए तो हिंदी की फिल्मों और धारावाहिकों में आधे से अधिक तो अंग्रेजी के शब्द बोले जाते हैं। इनमें से कई तो हमारे समझ में नहीं आते। कई बार तो पूरा कार्यक्रम ही समझ में नहीं आता। बस अपने हिसाब से हम कल्पना करते हैं कि इसने ऐसा कहा होगा। अलबत्ता पात्रों के पहनावे की वजह से ही सभी कार्यक्रम देखकर हम मान लेते हैं कि हमने हिंदी फिल्म या कार्यक्रम देखा।


ऐसे में हमें ऐसी प्रवृत्तियों को हतोत्साहित करना चाहिए। हिंदी से पैसा कमाने वाले सारे संस्थान हमारे ध्यान और मन को खींच रहे हैं उनसे विरक्त होकर ही हम उन्हें बाध्य कर सकते हैं कि वह हिंदी का शुद्ध रूप प्रस्तुत करें। अभी हम लोग अनुमान नहीं कर रहे कि आगे की पीढ़ी तो भाषा की दृष्टि से गूंगी हो जाएगी। अंग्रेजी के बिना इस दुनिया में चलना कठिन है यह तो सोचना ही मूर्खता है। हमारे पंजाब प्रांत के लोग जुझारु माने जाते हैं और उनमें से कई ऐसे हैं जो अंग्रेजी न आते हुए भी ब्रिटेन और फ्रांस गए और अपने रोजगार भी किया। कहने का तात्पर्य यह है कि रोजगार और व्यवहार में आदमी अपनी क्षमता के कारण ही विजय प्राप्त करता है न कि अपनी भाषा की वजह से! अलबत्ता उस विजय का गौरव तभी हृदय से अनुभव किया जाए पर उसके लिये अपनी भाषा शुद्ध रूप में अपने अंदर होना चाहिए। सबसे बड़ी बात यह है कि आपकी भाषा की वजह से आपको दूसरी जगह सम्मान मिलता है। प्रसंगवश यह भी बता दें कि अंतर्जाल पर अनुवाद टूल आने से भाषा और लिपि की दीवार का खत्म हो गई है क्योंकि इस ब्लॉग लेखक के अनेक ब्लॉग दूसरी भाषा में पढ़े जा रहे हैं। अब भाषा का सवाल गौण होता जा रहा है। अब मुख्य बात यह है कि आप अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिए कौन सा विषय लेते हैं और याद रखिए सहज भाव अभिव्यक्ति केवल अपनी भाषा में ही संभव है।

साभार: दीपक भारतदीप

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