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सरकार की मंशा क्या सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की है?

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भारत सरकार अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाना चाहती हैं. वह ऐसा हर बार करती भी आई हैं लेकिन अभी तक सोशल मीडिया की आवाज को दबाने में कामयाब नहीं हो पायी हैं. ऐसा नहीं हैं कि उसने ऐसी कोई कोशिश पहले नहीं की हैं. इसने पहले भी आसाम हिंसा के समय सांप्रादायिकता का बहाना बनाकर अपने विरुद्ध चलने वाले ट्विटर और फेसबुक पेजों को उस समय बंद करवा दिया था.  वह एक ही बार उठाया गया कदम था लेकिन अब जो समाचार मिल रहे हैं उनके अनुसार सरकार सोशल मीडिया पर लगातार अंकुश बनाए रखने की तैयारी कर रही है.


जो समाचार मिल रहे हैं उनके अनुसार सरकार प्रसारण मंत्रालय के अधीन न्यू मीडिया विंग की स्थापना करने के लिए तैयार हो गयी है. इसके लिए शुरूआती बजट का प्रावधान भी कर दिया गया है. यह न्यू मीडिया विंग का काम सोशल मीडिया में सरकारी कामों का प्रचार करना और सोशल मीडिया पर नजर रखना बताया जा रहा है. हालांकि लगातार सरकार के मंत्रियों की सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने जैसी सलाह देने वाले बयानों के चलते सरकार के इस कदम पर सवाल उठना लाजमी है. सरकार के इस कदम को सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के तौर पर देखा जा रहा है.


जिस तरह बाबा रामदेव, अन्ना हजारे जैसे आंदोलनों में सोशल मीडिया मुखर होकर उभरा है, सरकार सोशल मीडिया के सामने लाचार और मजबूर हो गयी थी.  उन आंदोलनों के बाद भी सरकार के कार्यों को लेकर सोशल मीडिया में सरकार पर लगातार हमले होते रहे हैं और अभी भी हो रहे हैं. सोशल साइटें चला रही ये तमाम कम्पनियां विदेशी होने के कारण सरकार इनको दबाव में लाकर मनमाने तरीके से दखलंदाजी भी नहीं कर पा रही है. यही कारण है कि सरकार लगातार सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की ख्वाहिशमंद रही है जो वो अब न्यू मीडिया विंग के जरिये करना चाह रही है.


सरकार क्या सोशल मीडिया पर निगरानी करके लोगों के गुस्से को दबा सकती है? सोशल मीडिया तो अपनी भावनाएं व्यक्त करने का माध्यम भर हैं जहां पर लोग अपने मन के भावों को प्रकट करते हैं. जब सरकारों के काम ही आलोचना वाले होंगे तो लोग उसकी सराहना कैसे करेंगे. अभी का ताजा मामला ही ले लीजिए जिस तरह से शहीदों का अपमान बिहार सरकार के किसी भी मंत्री ने एअरपोर्ट पर नहीं पहुंचकर किया और उसके बाद एक मंत्री भीमसिंह ने यह बयान देकर “कि जवान तो होते ही शहीद होने के लिए हैं” रही-सही कसर पूरी कर दी. अब शहीदों के साथ ऐसे बर्ताव होंगे तो हर व्यक्ति ऐसी सरकारों की आलोचना ही करेगा, शाबाशी तो देने से रहा. इसलिए सरकारों को सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की बजाय अपने रवैये में बदलाव करना चाहिए.

साभार: पूरण खण्डेलवाल

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