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उतराखण्ड आपदा के बाद राहत कार्यों पर जिस तरह से राजनितिक सोच हावी है वो यह दर्शाती है कि हमारे राजनितिक दल कितनें निचे गिर सकती है. हर कोई राहत और बचाव कार्यों के जरिये अपनी राजनैतिक चालें चलने पर आमादा है. जहां इस मामले में बाकी पार्टियों के हालात बाद है तो कांग्रेस के हालात तो बदतर से ज्यादा बुरे हो गएँ है. किस तरह से राजनीति हो रही है इसका उल्लेख मैनें कल अपनी पोस्ट “संवेंदनशून्य राजनीति को झेलने को मजबूर लोग” में किया था. लेकिन आज जो देखनें को मिला वो तो और भी भयावह है.
जहां प्रधानमंत्री और उतराखण्ड सरकार राहत के लिए लोगों से पैसे देने की अपील कर रहें है. वहीँ उतराखण्ड सरकार विज्ञापनों पर पैसा खर्च कर रही है. एक और विज्ञापनों से राहत और बचाव कार्यों में अपनी नाकामी छुपाने की कोशिश की जा रही है. वहीँ इन विज्ञापनों के जरिये नाकामी पर तल्ख़ हो रहे मीडिया को लालच देकर उससे नरम रुख अख्तियार करनें की आशा की जा रही है. जहां लोग राहत के नाम पर अपनी जेब का पैसा राहत कोष में जमा करवा रहे हैं वहीँ उतराखण्ड की सरकार सरकारी धन के जरिये अपनी छवि चमकाने और अपनी अपनी नाकामी को छुपाने की कोशिश की जा रही है. अगर किसी को मेरी बात पर शंका हो तो इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं.
और अब आपदा की राजनीति
लोग जहां दुःख की इस घड़ी में यथासंभव सहयोग दे रहें है वहीँ सरकारों द्वारा इस तरह से धन की बर्बादी की जा रही है. और यहाँ सवाल धन की बर्बादी का तो है ही लेकिन साथ में सवाल सोच का भी है. अभी तक आपदा में फंसे हुए लोगों को पूरी तरह से निकाला भी नहीं गया है और सेना के जवान हर तरह की जोखिम उठाकर उनको बचाने में लगे हुए हैं. वहीँ उतराखण्ड सरकार और उनकी पार्टी को पीड़ित लोगों की चिंता से ज्यादा अपनी सरकार और पार्टी की छवि चमकाने की चिंता है. दूसरी और आज देहरादून में राहत पहुंचाने के नाम पर कांग्रेस और टीडीपी के नेताओं में मारपीट भी हुयी है. जिससे जाहिर होता है की पीड़ित लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने से ज्यादा श्रेय लेने की चिंता है. अफ़सोस होता है की राजनीति इतनी निचे भी गिर सकती है.!
साभार: पूरण खंडेलवाल
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