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४ जून : लोकतंत्र पर सवालिया निशान लगाता रहेगा !!

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चार जून का दिन एक ऐसी कसक लेकर आता है जो हमारे देश की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था (Democratic Governance) पर हमेशा एक सवालिया निशान बनकर खड़ा रहेगा ! यही वो दिन था जब देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) का रामलीला मैदान (Ramlila Ground) आधी रात को सत्तानशीं लोगों की तानाशाही का गवाह बना था ! जब बाबा रामदेव जी (Ramdev)  जी (Ramdev) के कालेधन (Black Money) को लेकर हो रहे शांतिपूर्ण आंदोलन में भाग लेने आये पैंतीस से चालीस हजार लोगों पर रात को सोते समय सताधारियों के इशारों पर पुलिस की बर्बरता बरस पड़ी ! सोते हुए लोगों को समझ में आता तब तक पुलिस का दमनचक्र चालू हो चूका था ! आंसू गैस के गोले और पुलिस की लाठियां लोगों को निशाना बना रही थी !



कालेधन (Black Money)  वाले मामले को लेकर तो सरकार कितनी संजीदा है इसका पता तो सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार के टालमटोल वाले रवैये को देखकर ही लग गया ! जब सर्वोच्च न्यायालय तक नें तल्ख़ रवैया अपनाते हुए सरकार से पूछा कि जब सरकार कुछ नहीं कर रही है इस मामले में तो क्यों ना न्यायालय इसकी जांच के लिए अपनी तरफ से जांच समिति का गठन कर दे ! और तभी सरकार नें अपनी तरफ से एक जांच समिति का गठन किया और न्यायालय की जांच समिति का गठन नहीं होने दिया ! उसके बाद तो सरकारी जांच समिति का हाल नौ दिन चले अढाई कोस वाली हालत है ! और विदेशों में कालेधन (Black Money)  रखने वालों के जो नाम फ्रांस और जर्मनी से मिले थे ! सरकार उनके धन को कर वसूल करके सफ़ेद धन में गुपचुप तरीके से परिवर्तित कर रही है !


इसलिए सरकार जब कालेधन (Black Money)  से जुड़े लोगों को बचाने पर आमादा थी तभी तो बाबा रामदेव जी (Ramdev)  जी को सरकार के विरुद्ध आंदोलन करने को मजबूर होना पड़ा था ! लेकिन किसी नें भी यह नहीं सोचा था कि कोई लोकतांत्रिक सरकार इस तरह के तानाशाहीपूर्ण रवैये पर उतर आएगी ! कुछ लोगों के बाबा रामदेव जी (Ramdev)  जी के बारे में अपने तर्क हो सकते हैं और वो उनको सही या गलत ठहरा सकते हैं ! लेकिन उस रात को जो लोग पुलिस कि बर्बरता के शिकार हुए हैं उनमें से हर एक मेरे भारतीय भाई बहन थे ! जिन पर हुए अत्याचार को में कतई सही नहीं मान सकता हूँ ! और में इसकी सदैव भर्त्सना करता रहूँगा ! ऐसे कहने वाले तो ओसामा बिन लादेन को भी आदरणीय कहते हैं और वही लोग बाबा रामदेव जी (Ramdev)  को ठग और धूर्त कहते हैं इसलिए ऐसे लोगों की बातों पर क्या कहा जाए !


मैंने इस देश में हिंसक आंदोलन भी देखे हैं और उनमें पुलिस को मूकदर्शक बने रहते भी देखा है ! और राजस्थान में गुर्जर आंदोलन वाला वो दौर भी देखा है जिसमें गुर्जरों नें देश की राजधानी दिल्ली ,मुंबई और राजस्थान का रेलवे संपर्क पूरी तरह ठप्प कर दिया था ! आधे से ज्यादा राजस्थान का जनजीवन अस्तव्यस्त कर दिया था ! लेकिन तब सत्ताधीशों का इतना साहस नहीं हुआ कि पुलिस की मदद से उस आंदोलन को कुचला जाता ! और उन्ही सत्ताधारियों नें ४ जून २०११ को शांतिपूर्ण अहिंसात्मक आंदोलन में भाग ले रहे सोते हुए लोगों पर कारवाई करवा कर मानों कोई बहुत बड़ा किला फतह कर लिया हो !


देश में समझदार लोगों के लिए जिस तरह से २५ जून १९७५ का दिन लोकतंत्र पर सवालिया निशान बनकर खड़ा है वैसे ही यह चार जून २०११ का दिन भी हमेशा के लिए लोगों को झकझोरता रहेगा और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था (Democracy) पर एक सवालिया निशान बनकर खड़ा रहेगा!

साभार: पूरण खंडेलवाल

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