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सरकारी योजनाएं और वास्तविकता

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देश में वोटों के जुगाड़ में लगी हुई केंद्र से लगाकर हर राज्य सरकार ने जिस तरह से विभिन्न योजनाओं के माध्यम से विद्यार्थियों और भविष्य में उनके लिए वोट करने वाले संभावित वोटर्स को लुभाने का जो क्रम शुरू किया है वह कहीं से भी थमता नज़र नहीं आता है क्योंकि एक के बाद एक राजनैतिक दल अपने वजूद को बचाए रखने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाने में लगे हुए हैं । पिछले वर्ष यूपी में चुनावों के समय अपनी पूर्व निर्धारित स्थिति से पलटते हुए सपा ने युवाओं को लुभाने के लिए आधुनिक तकनीक का सहारा लिया था अब उसे इस कारण कितने वोट मिले और कितने बसपा से ऊबी हुई जनता के कारण यह तो किसी को पता नहीं चला पर उससे देश में छात्रों में टेबलेट और लैपटॉप बांटने की एक नई परंपरा का रास्ता भी खुल गया. अभी हाल में राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने अपने यहाँ बच्चों को टेबलेट खरीदने के लिए छह हज़ार रुपयों के चेक प्रदान किये हैं जिनसे वे अपने लिए बाज़ार से टेबलेट खरीद सकते हैं एक अनुमान के अनुसार सरकार ने लगभग ३.५ लाख विद्यार्थियों को इस योजना के तहत चेक प्रदान किये हैं.


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वैसे देखा जाये तो इस मसले से किसी भी तरह से किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए पर जब इस तरह के उपाय केवल वोट पाने के लालच में ही किये जाते हैं तो वे लम्बे समय तक कारगर नहीं हो पाते हैं। भारतीय संविधान के अनुसार केंद्र समेत हर राज्य सरकार को इस बात की पूरी छूट मिली हुई है कि वह नागरिकों के लिए किसी भी तरह की कल्याणकारी योजनाओं को ला सकती हैं पर आज योजनाओं को जिस तरह से वोट के घेरे में बांधा जाने लगा है उस परिस्थिति में सही प्रयासों के बारे में निर्णय आखिर कौन लेगा ? आज देश में सभी सरकारें धन की कमी का रोना रोती रहती हैं पर जब इस तरह के लोक लुभावन कामों और योजनाओं की बारी आती है तो उनके पास अचानक से ही अलादीन का चिराग़ आ जाता है और वे बिना किसी अन्य पहलू पर विचार किये ही इस तरह की योजनाओं को हरी झंडी दिखा देती हैं. यूपी सरकार ने जहाँ अपने दम पर लैपटॉप और टेबलेट खरीदने को प्राथमिकता दी वहीं राजस्थान की सरकार ने अपने क़दम का लाभ उठाने के लिए छात्रों को ही यह छूट प्रदान कर दी कि वे अपनी मर्ज़ी से इसे बाज़ार से खरीद कर केवल सूचित कर दें।


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आज देश में शिक्षा का जो स्तर है उसमें इस तरह के उपायों का क्या महत्त्व है हम सभी जानते हैं और इनकी इस स्तर पर कोई भी उपयोगिता भी नहीं है फिर भी सरकारें इस तरह से सार्वजनिक धन की बर्बादी करती रहती हैं ? इस मद में राजस्थान सरकार ने लगभग २१० करोड़ रूपये के चेक बांटे हैं पर यदि इन २१० करोड़ रुपयों से सही दिशा में प्रयास किये जाते तो हर जिले में नहीं तो कम से कम मंडल स्तर पर तो तकनीकी शिक्षा के अच्छे केन्द्रों की स्थापना की ही जा सकती थी पर उससे शायद सरकार को इस तरह से वोट नहीं मिल पाते और उसकी संभावनाएं क्षीण हो जातीं ? बेहतर और टिकाऊ रूप से प्रयासों के स्थान पर अब जिस तरह से केवल चुनावों को ध्यान में रखकर योजनायें बनायी जाने लगी हैं वे किसी भी तरह से देश और जनता का भला नहीं कर सकती हैं क्योंकि आठ और दस पास किये गए छात्रों के लिए इस उपकरणों की उपयोगिता क्या है अभी यह सिद्ध नहीं हो पाया है तो उस स्थिति में इनको अच्छे प्रयासों के रूप में कैसे सोचा और माना जा सकता है फिलहाल वोटों की वेदी पर सिद्धातों का दहन करने में कोई भी दल पीछे नहीं है भले ही उससे देश कितना भी पीछे ही क्यों न जा रहा हो ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…

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