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रेप और कानून

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दिल्ली में राज्यों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक में जिस तरह से रेप के आरोपियों को मृत्युदंड दिए जाने की मांग पर कोई सहमति नहीं बन पाई उससे यही लगता है कि हमारे कानून में बहुत सारी ऐसी पेचीदगियां भरी पड़ी हैं अगर उन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में रेप के किसी भी आरोपी को फाँसी तक नहीं पहुँचाया जा सकेगा ? देश में पहले से ही बहुत सारे कानून बने पड़े हैं जिनका आज के समय में कितना महत्त्व है यह कोई नहीं जनता है फिर भी जिस तरह से रोज़ ही नए कानूनों की मांग की जाती है उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं कोई तो कमी है इन कानूनों में जिसके कारण भी आज ये अपने दम पर कोई भय उत्पन्न नहीं कर पाते हैं ? रेप और महिलाओं और अन्य ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों के बारे में हर तहसील मुख्यालय पर एक स्वतः संज्ञान वाली अस्थायी त्वरित कोर्ट होनी चाहिए जो इस तरह के अपराधों की दैनिक आधार पर सुनवाई करे तथा हर थाने में एक पुलिसकर्मी ऐसा होना चाहिए जिस पर महिलाओं, लड़कियों और विशेष कानून के तहत सामाजिक सुरक्षा पाए अनुसूचित जाति आदि वर्ग के लोगों को त्वरित न्याय दिलाने की ज़िम्मेदारी डाली जा सके.



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अभी तक विशेष कानूनों के तहत समाज के कमज़ोर वर्गों को बहुत सारी कानूनी सुरक्षा प्रदान की गयी है पर जब भी उनके अनुपालन की बात आती है तो सबसे पहले पुलिस से ही आम लोगों को उलझना पड़ता है जिस कारण से भी न्याय में बहुत विलम्ब हो जाता है. ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए हमारे पास एक ऐसा त्वरित बल होना चाहिए जो पुलिस, प्रशासनिक और न्यायिक अधिकारियों के समूह से बनाया जाये जो आवश्यकता पड़ने पर अन्य दैनिक कामों को छोड़कर इस तरह के केस पर पहले अपना निर्णय सुनाये. इस तरह की व्यवस्था किये जाने से जहाँ एक तरफ़ उन लोगों में कानून का कुछ भय उत्पन्न होगा जो इससे हमेशा ही खिलवाड़ करते रहते हैं और साथ ही पीड़ितों के मन में भी सही और त्वरित न्याय की आशा जग जाएगी. इस काम के लिए कोई अलग से कोर्ट बनाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह विलक्षण केस होते हैं इसलिए इन पर तुरंत ध्यान देकर इनमें सजा सुनाने का प्रावधान होना चाहिए. सरकार के सभी तंत्र पहले से ही काम के बोझ से दबे हुए हैं ऐसे में उनका बोझ कम करने की ज़रुरत है.


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देश में सबस एपहले अन्य फालतू के कामों को छोड़कर पुलिस और प्रशासनिक कार्यों के साथ न्यायिक कार्यों में लगे विभागों को नियमित तौर पर भर्ती करने का काम करना चाहिए जिससे आने वाले समय में ये सभी विभाग आवश्यकता पड़ने पर तेज़ी से काम करते हुए दोषियों को सज़ा दिलवाने में मदद कर सकें. केवल दिल्ली और राज्यों की राजधानियों में बैठकर चिंतन करने से ज़मीनी हक़ीक़त नहीं बदलने वाली है इसलिए अब निचले स्तर से प्रयास शुरू करने की आवश्यकता है. आबादी के अनुसार इन विभागों में कर्मचारियों की तैनाती किये बिना किसी भी तरह से कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि जब ये सभी काम के बोझ से इतना दबे हुए हैं तो वे केवल प्रभावशाली लोगों के हितों के काम ही करते रहते हैं. इस तरह के महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले किसी भी अपराध में जो भी पुलिस कर्मी विवेचना कर रहा हो उसका तालमेल पूरी तरह से इन अधिकारियों के साथ होना चाहिए जिससे पूरी प्रक्रिया को समय रहते समाप्त किया जा सके. किसी भी रेप के केस में यह आवश्यक किया जाना चाहिए कि एक समय सीमा में उसको सुनवाई पूरी करके सजा दिलवाने का काम किया जाये. साथ ही यदि अन्य किसी तरह से सज़ा को कड़ा करने पर सहमति नहीं बन पाती है तो कम से कम आरोपी को वास्तव में आजीवन जेल में ही रहने दिया जाये.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है…


लेखक- आशुतोष  शुक्ला


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अगर ये साथी हैं तो बचाएगा कौन?

ऐसी भी क्या नाराजगी !!


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