Menu
blogid : 11302 postid : 33

रिसता हुआ जख्म है कराची

Hindi Blog
Hindi Blog
  • 91 Posts
  • 6 Comments

क्या आपने सोचा है कि रवांडा क्यों याद है? इसलिए कि वहां एक साल में आठ लाख लोगों का नरसंहार हुआ था? बोस्निया क्यों याद रहता है? क्योंकि वहां ढाई साल चले नरसंहार में दो लाख लोग मारे गए? अल्जीरिया क्यों नहीं भूलता? क्योंकि वहां भी दस साल के दौरान दो लाख से ज्यादा लोग एक दूसरे के हाथों कत्ल हुए? श्रीलंका के गृह युद्ध को क्यों दुनिया में सब जानते हैं? शायद ढाई लाख लोगों के मरने की वजह से.. और कश्मीर क्यों नहीं भूलता? क्योंकि वहां भी दस वर्षों के दौरान सत्तर हजार से एक लाख के बीच लोग मारे गए हैं. और लेबनान? क्योंकि पंद्रह बरस के अरसे में हर एक ने उसकी ईंट से ईंट बजा दी थी. सीरिया बराबर दुनिया भर के मीडिया की सुर्खियों में क्यों है? क्योंकि डेढ़ बरस के दौरान वहां बीस हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और इस वक्त भी रोजाना लगभग डेढ़ सौ लोग मर रहे हैं. लेकिन ये सारी मिसालें तो देशों की हैं. किसी एक शहर की तो नहीं. अगर मैं कहूं कि इस वक्त दुनिया का सबसे लावारिस, असंवेदनशील और खूनी शहर कराची है. बल्कि शहर क्या, एक रिसता हुआ जख्म है तो क्या आप मान लेंगे? जाहिर है कि फौरी तौर पर आपको इस बात पर यकीन न आए कि दो करोड़ की आबादी वाला वो शहर जो पाकिस्तान को लगभग साठ फीसदी राजस्व देता हो और पाकिस्तान की ट्रेन का इंजन समझा जाता हो.


Read:अगर मैं प्रधानमंत्री होता


साथ ही वो देश का इकलौता व्यस्त बंदरगाह भी हो. थलसेना की पांचवी कोर, वायुसेना की दक्षिणी कमान और नौसेना का संचालन मुख्यालय वहां हो और अर्धसैनिक बल का अहम केंद्र हो. वो भला इतना लावारिस, खूनी और असंवेदनशील कैसे हो सकता है? चलिए इस पहेली को समझने के लिए कुछ पीछे चलें. ये बात है अब से 27 साल पहले की जब अप्रैल 1985 में मध्य कराची में कॉलेज की एक छात्रा बुशरा जैदी सड़क पार करते हुए एक यात्री गाड़ी की चपेट में आने से मारी गई. तब से कराची ने सुख का दिन नहीं देखा. हिंसा के तरीके बदलते रहे हैं लेकिन हिंसा नहीं बदली है. पहले नस्ली, फिर धार्मिक, फिर गिरोह, फिर माफियाना, फिर सामूहिक, फिर व्यक्तिगत, फिर नस्ली, फिर धार्मिक, फिर माफियाना, फिर…. पाकिस्तान में जिस जिस संस्था, संगठन, गिरोह या व्यक्ति को अपना निशाना पक्का करना हो या उन्हें निजी, वैचारिक या राजनीतिक बदला लेना हो, डाके और दहशतगर्दी का अभ्यास करना हो, तो उसके लिए कराची सबसे अच्छी अकेडमी और फायरिंग रेंज है. बात शायद अब भी साफ नहीं हुई. चलिए गणित से कुछ मदद लेते हैं. कराची में 1985 से 2012 तक के 27 वर्षों का औसत निकालें तो इस शहर में हिंसा में रोज दस मौतें होती हैं. मतलब एक महीने में तीन सौ साठ मौतें और एक साल में चार हजार तीन सौ बीस और 27 साल में एक लाख 16 हजार छह सौ चालीस लाशें जो हिंसा का शिकार हुई हैं. क्या आपके जहन में दुनिया का कोई शहर है जहां पिछले 27 बरस से हर रोज हिंसा में औसतन दस लोग मर रहे हैं? कराची में 1985 में एक नया कब्रिस्तान मोआछ गोठ भी बनाया गया.


इस कब्रिस्तान का प्रबंधन और रखरखाव मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल सत्ता ईधी का संगठन संभालता है. कराची के दूसरे कब्रिस्तानों का क्षेत्रफल गैरकानूनी कब्जों के कारण लगातार घट रहा है. लेकिन मोआछ गोठ कब्रिस्तान लगातार बढ़ रहा है. आज ये दस एकड़ से बढ़ कर तीस एकड़ में फैल गया है. कराची में रोजाना औसतन 22 से 23 लावारिस लाशें पड़ी मिलती हैं. इसमें चिकित्सा और गैर चिकित्सा, दोनों कारणों से होने वाली मौतें शामिल हैं. इस हिसाब से सालाना आठ हजार चार ऐसी लाशें मिलती हैं जिनका कोई दावेदार नहीं होता. ये सभी लाशें मोआछ गोठ के कब्रिस्तान में दफन कर दी जाती हैं. कब्र के सिरहाने नाम नहीं होता, बस एक नंबर होता है. बीते 27 वर्षों के दौरान दो लाख से ज्यादा लावारिस लाशें इस कब्रिस्तान में दफन की जा चुकी हैं. क्या दुनिया के किसी और शहर में लावारिस लोगों का इतना बड़ा कब्रिस्तान है??? पाकिस्तान के सबसे बड़े कब्जा माफिया, भत्ता माफिया, सट्टा माफिया समेत किसी भी माफिया की बात हो और कराची का जिक्र न आए, ऐसा क्या मुमकिन है??? सब कहते हैं कि देश में अमन और कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति की वजह कबायली इलाकों पर सरकार का नियंत्रण न होना है. तो क्या कराची भी दक्षिणी वजीरिस्तान में है???


वुसतुल्लाह ख़ान



Read:मंटो की याद में


Tags:Pakistan, Karachi, Algeria, Media, Medical Science, मीडिया , पाकिस्तान , कब्रिस्तान , कराची , कानून-व्यवस्था

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply